
मध्यप्रदेश के रीवा, सीधी, सतना, शहडोल, उमरिया, और अनूपपुर जिलों में व्यापारियों द्वारा एक और दो रुपए के सिक्के लेने से मना करने की समस्या तेजी से बढ़ रही है। जहां व्यापारी छुट्टे के नाम पर दो और एक रुपए के सिक्के थमाते हैं, वहीं खरीदारी करते समय इन सिक्कों को लेने से साफ मना कर देते हैं। इस मनमानी ने गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों को एक बड़े संकट में डाल दिया है, जिससे उन्हें रोजमर्रा की जरूरतों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
इस समस्या के कारण
व्यापारियों का दावा है कि बैंक छोटे सिक्कों को जमा नहीं करते या उन्हें बड़ी मुश्किल से जमा किया जाता है। हालांकि, यह सिर्फ एक बहाना है, क्योंकि यह जालसाजी व्यापारियों के लिए अतिरिक्त मुनाफा कमाने का जरिया बन चुका है। गरीब जनता जो कि इन सिक्कों का उपयोग अपनी छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने में करती है, इस तरह के अन्यायपूर्ण रवैये का शिकार बन रही है। समीपवर्ती राज्य उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इस प्रकार की समस्या नहीं है, जो दर्शाता है कि समस्या का समाधान संभव है यदि प्रशासन ठोस कदम उठाए।
कानूनी स्थिति और धाराएं
- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 31 और 32: इन धाराओं के तहत, भारतीय मुद्रा (सिक्के और नोट) को वैध मुद्रा के रूप में मान्यता दी गई है। कोई भी व्यक्ति या व्यापारी वैध मुद्रा को लेने से मना नहीं कर सकता। अगर व्यापारी वैध सिक्कों को लेने से मना करते हैं, तो वे इस अधिनियम का उल्लंघन करते हैं।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 188: यह धारा सरकार के आदेशों की अवमानना से संबंधित है। यदि प्रशासन या सरकार द्वारा कोई आदेश जारी किया जाता है कि वैध मुद्रा को स्वीकार किया जाए और कोई व्यापारी इसका पालन नहीं करता, तो यह अवमानना माना जाएगा, जिसके तहत उसे दंडित किया जा सकता है।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 420: यह धारा धोखाधड़ी से संबंधित है। व्यापारियों द्वारा ग्राहकों को छुट्टे के नाम पर एक और दो रुपए के सिक्के देना, लेकिन ग्राहकों से लेने से मना करना एक प्रकार की धोखाधड़ी हो सकती है। यह जालसाजी व्यापारियों द्वारा मुनाफा कमाने के उद्देश्य से की जा रही है, जो इस धारा के तहत अपराध माना जा सकता है।
- मुद्रा अधिनियम, 2011 (Coinage Act, 2011): इस अधिनियम के अनुसार, एक, दो, पाँच, दस और बीस रुपए के सिक्के वैध मुद्रा हैं। इसे लेकर कोई भी इन सिक्कों को लेने से मना नहीं कर सकता। इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

प्रशासन और सरकार की निष्क्रियता
गंभीर विषय यह है कि सरकारी और प्रशासनिक अधिकारी भी इस विषय से परिचित हैं क्योंकि वे भी इन्हीं बाजारों में खरीदारी करते हैं, लेकिन फिर भी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। इससे संदेह होता है कि कहीं व्यापारियों और अधिकारियों के बीच कोई गुप्त सांठगांठ तो नहीं है? यह प्रशासनिक चूक गरीब और आम जनता के साथ अन्याय है, जो सिर्फ अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी छुट्टे पैसों की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
सरकार से अपेक्षित कदम
सरकार को तत्काल इस विषय पर संज्ञान लेना चाहिए। इस प्रकार के मामलों की गहनता से जांच करवाने की आवश्यकता है, जिसमें व्यापारियों और बैंक अधिकारियों के बीच सांठगांठ की जांच भी शामिल हो। इस प्रकार के काले धंधे को उजागर कर, दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएं न हों।
इस समस्या के समाधान के लिए:
- नियमों का सख्त पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि हर व्यापारी सभी प्रकार के सिक्कों को लेने के लिए बाध्य हो।
- जागरूकता अभियान चलाया जाए जिससे आम जनता और व्यापारी सिक्कों के कानूनी महत्व को समझें।
- कानूनी कार्रवाई के लिए एक हेल्पलाइन या शिकायत केंद्र की स्थापना हो ताकि ऐसे मामलों में पीड़ित लोग सीधे शिकायत कर सकें।
निष्कर्ष
मध्यप्रदेश के व्यापारियों द्वारा छोटे सिक्कों को लेने से मना करना न केवल गैर-कानूनी है, बल्कि यह एक आर्थिक शोषण है जो गरीब जनता पर भारी पड़ रहा है। यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार इस मामले की जांच करे और दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए ताकि आम जनता को उनके अपने देश की वैध मुद्रा से वंचित न किया जाए।