विंध्य की पावन धरा: एक अविस्मरणीय शैक्षणिक यात्रा
यह केवल एक यात्रा वृत्तांत नहीं, बल्कि विंध्य की पावन माटी, ज्ञान के धवल आलोक और आस्था के अटूट विश्वास से बुना गया एक सजीव 'चलचित्र' है। इसे पढ़ते समय आपके कानों में बसों के इंजनों की गूँज सुनाई देगी, आपकी आँखों के सामने विंध्य की सुरम्य वादियाँ एक-एक कर उभरेंगी और आपके मन में अपनी विरासत के प्रति गौरव का संचार होगा। शिक्षा केवल किताबों के पन्नों तक सीमित नहीं होती; वह तो धूल भरी सड़कों, ऊंचे पहाड़ों और प्राचीन मंदिरों की चौखट पर भी बिखरी होती है। आइए, १२ अध्यायों की इस विस्तृत श्रृंखला के प्रथम भाग में प्रवेश करते हैं।
अध्याय १: मंगलाचरण और प्रस्थान – 'पड़री' से 'हड़बड़ो' तक
समय की गणना: २४ दिसंबर २०२५, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पश्चात पौष मास की चतुर्थी। सूर्य देव धनु राशि में विराजमान होकर चराचर जगत को अपनी रश्मियों से ऊर्जावान बना रहे थे। शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पड़री (सीधी) का प्रांगण आज किसी तीर्थ की तरह पवित्र और उत्सवमयी था। १८ बालकों और ३४ बालिकाओं के बैगों में केवल वस्त्र नहीं, बल्कि जिज्ञासाओं के अनगिनत पुलिंदे थे।
(अर्थ: हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी! आप सभी इस ज्ञान-यात्रा के जल में पधारें।)
दोपहर १२:३० बजे, जैसे ही बसों ने प्रस्थान की गूँज की, वातावरण 'ॐ'कार के घोष से भर गया। १५ किलोमीटर बाद 'हड़बड़ो' स्कूल के साथियों का आगमन हुआ। प्राचार्य श्री डी.पी. सिंह सर और श्री एस.बी. सिंह सर के कुशल निर्देशन में ६७ यात्रियों का यह विशाल 'ज्ञान-रथ' सीधी की सीमाओं को पार कर विंध्य की गहराइयों में उतरने लगा।
अध्याय २: सीधी से गुढ़ – सोन की लोरी और बढ़ौरा का गौरव
जैसे ही बसें सीधी के शोर-शराबे को पीछे छोड़कर आगे बढ़ीं, प्रकृति ने अपना आंचल फैला दिया। खिड़की से बाहर भागते पेड़ और ऊंचे पहाड़ छात्रों को अचंभित कर रहे थे। अचानक बस की बाईं ओर 'बढ़ौरा शिव मंदिर' के शिखर ने दर्शन दिए। यह मंदिर विंध्य की सांस्कृतिक धरोहर का वह स्तंभ है जो सदियों से कलचुरी कालीन वैभव की गवाही दे रहा है।
शिव स्तुति
भावार्थ: मैं उन विश्वेश्वर, नीलकंठ महादेव को मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। उनके दर्शन मात्र से समस्त यात्रा मंगलमय हो जाती है।
रास्ते में 'सोन नदी' की विशाल रजत जलधारा ने हमारा स्वागत किया। श्री आर.एल. कोल सर ने बताया कि कैसे यह नदी विंध्य की जीवनरेखा है। जल की कल-कल ध्वनि ऐसी लग रही थी मानो सोन मैया इन बच्चों को 'लाड भरी लोरियां' सुनाकर उनकी थकान हर रही हों।
अध्याय ३: मोहनिया टनल – जहाँ विज्ञान और पहाड़ गले मिले
विज्ञान की पराकाष्ठा (GK)
गणित शिक्षक संदीप तिवारी सर और नरेंद्र कुमार त्रिपाठी सर ने छात्रों को बताया कि यह भारत की सबसे चौड़ी ६-लेन टनल (२.२८ किमी) है। 'NATM' विधि से निर्मित यह टनल विज्ञान का वह आधुनिक मंदिर है जहाँ पहाड़ ने तकनीक के आगे अपना शीश झुका दिया है। पहले जिस घाटी को पार करने में ४५ मिनट लगते थे, अब मात्र ३ मिनट में सुरक्षित यात्रा पूर्ण होती है।
अध्याय ४: गुढ़ से रीवा – एशिया का सूरज और मेधा का वटवृक्ष
जैसे ही हम टनल के बाहर आए, पहाड़ों पर बिछा 'नीला समंदर' दिखाई दिया—यह एशिया का सबसे बड़ा सोलर प्लांट था। यहाँ की बिजली दिल्ली मेट्रो तक को दौड़ाती है। इसके बाद हम रीवा शहर में प्रविष्ट हुए। खिड़की से टीआरएस कॉलेज का भव्य भवन दिखा, जो शिक्षा का वह वटवृक्ष है जहाँ से विंध्य की कई पीढ़ियों ने ज्ञान प्राप्त किया।
रीवा की ऐतिहासिक झलक
रानी तालाब का जल प्रबंधन, रीवा राजमहल (सफेद शेरों की जन्मस्थली) और देउर कोठार के बौद्ध स्तूप—ये सभी मिलकर रीवा को एक वैश्विक पहचान दिलाते हैं। बच्चों ने महसूस किया कि विंध्य केवल एक क्षेत्र नहीं, बल्कि विज्ञान और विरासत का अद्भुत संगम है।
Who?
शासकीय विद्यालय पड़री एवं हड़बड़ो के ६७ छात्र एवं शिक्षक।
Where?
सीधी की माटी से लेकर रीवा के आधुनिक गौरव तक।
When?
२४ दिसंबर २०२५, पौष चतुर्थी का शुभ दिन।
यात्रा की अगली कड़ी और भी रोमांचक है...
अगला भाग: जब महादेव ने बुलाया बिरसिंहपुरकैसी लगी यह यादों की यात्रा?
क्या आपने कभी रीवा-सीधी की इस मोहनिया टनल का अनुभव किया है? अपनी राय कमेंट बॉक्स में ज़रूर साझा करें।



















































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